दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
लबाँ हैं पिस्ता ज़नख़ सेब ओ चश्म हैं बादाम
तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
हिसार-ए-क़ल्ब की गोया थी फ़त्ह तेरे नाम
दिलों की राह में ख़तरे पड़े हैं क्या यारो
कि चंद रोज़ से मौक़ूफ़ है पयाम ओ सलाम
उमीद-वार जनाब-ए-ख़ुदा से है 'हातिम'
कि होवे काम का उस के शिताब से अंजाम
ग़ज़ल
दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम