तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
जहाँ में काम थे जितने तमाम भूल गए
नमाज़ियों ने तुझ अबरू को देख मस्जिद में
ब-सम्त-ए-क़िबला सुजूद-ओ-क़याम भूल गए
ये वज़्अ' क्या है कि होते नहीं हो दस्त-बसर
अभी से अपनों का लेना सलाम भूल गए
गए थे ज़ोम में अपने पर उस को देखते ही
जो दिल ने हम से कहे थे पयाम भूल गए
तिरी तरफ़ हुई सूरत-गरान-ए-चीं की निगाह
क़लम को हाथ से रख अपना काम भूल गए
बुतान-ए-चर्ब-ज़बाँ सुन के ख़ूबी-ए-गुफ़्तार
अदब में दब गए हुस्न-ए-कलाम भूल गए
तिरी ऐ सर्व-ए-रवाँ देख कर अनोखी चाल
जो ख़ुश-ख़िराम थे अपना ख़िराम भूल गए
तिरी ये ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर देख कर सय्याद
शिकार आप हुए सैद ओ दाम भूल गए
बड़ा ग़ज़ब है कि 'हातिम' को तुम न पहचाना
वही क़दीम तुम्हारा ग़ुलाम भूल गए
ग़ज़ल
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम