तुम्हारी आँख में कैफ़िय्यत-ए-ख़ुमार तो है
शराब का न सही नींद का असर ही सही
शहज़ाद अहमद
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
ख़ुद अपनी जुस्तुजू का आप हासिल हो गया हूँ मैं
शहज़ाद अहमद
तुम्हारी बज़्म से भी उठ चले हैं दीवाने
जिसे वो ढूँड रहे थे वो शय यहाँ भी नहीं
शहज़ाद अहमद
तुम्हारी बज़्म से भी उठ चले हैं दीवाने
जिसे वो ढूँड रहे थे वो शय यहाँ भी नहीं
शहज़ाद अहमद
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
ता-हश्र तो ये दिल भी धड़कता न रहेगा
शहज़ाद अहमद
उड़ते हुए आते हैं अभी संग-ए-तमन्ना
और कार-गह-ए-दिल की वही शीशागरी है
शहज़ाद अहमद
उड़ते हुए आते हैं अभी संग-ए-तमन्ना
और कार-गह-ए-दिल की वही शीशागरी है
शहज़ाद अहमद