तख़्ता-ए-दार पे चाहे जिसे लटका दीजे
इतने लोगों में गुनाहगार कोई तो होगा
शहज़ाद अहमद
टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
दीवार को रस्ते से हटाता नहीं फिर भी
शहज़ाद अहमद
तलाश करनी थी इक रोज़ अपनी ज़ात मुझे
ये भूत भी मिरे सर पर सवार होना था
शहज़ाद अहमद
तलाश करनी थी इक रोज़ अपनी ज़ात मुझे
ये भूत भी मिरे सर पर सवार होना था
शहज़ाद अहमद
तमाम उम्र हवा फांकते हुए गुज़री
रहे ज़मीं पे मगर ख़ाक का मज़ा न लिया
शहज़ाद अहमद
तन्हाई में आ जाती हैं हूरें मिरे घर में
चमकाते हैं मस्जिद के दर-ओ-बाम फ़रिश्ते
शहज़ाद अहमद
तन्हाई में आ जाती हैं हूरें मिरे घर में
चमकाते हैं मस्जिद के दर-ओ-बाम फ़रिश्ते
शहज़ाद अहमद