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देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं | शाही शायरी
der tak koi kisi se bad-guman rahta nahin

ग़ज़ल

देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव

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देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
वो वहाँ आता तो होगा मैं जहाँ रहता नहीं

एक मैं हूँ धूप में कितना सफ़र तय कर लिया
एक तू है जो कभी बे-साएबाँ रहता नहीं

तुम को क्यूँ पेड़ों पे लिक्खे नाम मिटने का है दुख
इस बदलती रुत में पत्थर पर निशाँ रहता नहीं

वो बना लेता है अपना घोंसला दीवार में
जिस परिंदे का शजर में आशियाँ रहता नहीं

तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे
बे-ज़मीं लोगों के सर पर आसमाँ रहता नहीं