परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
शजर पे लिक्खा हुआ है शजर बराए-फ़रोख़्त
अफ़ज़ल ख़ान
साथियो अब मुझे रस्ते में उतरना होगा
डूबती नाव बचाने का नहीं हल कोई और
अफ़ज़ल ख़ान
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर है
गले लगा के कहूँ दार को मुबारक बाद
अफ़ज़ल ख़ान
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
तू सच बता ये मुलाक़ात आख़री है ना
अफ़ज़ल ख़ान
तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
यहाँ अपने सिवा कोई मुलाक़ाती नहीं होता
अफ़ज़ल ख़ान
तेरे जाने से ज़्यादा हैं न कम पहले थे
हम को लाहक़ हैं वही अब भी जो ग़म पहले थे
अफ़ज़ल ख़ान
तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
ये मिरा दिल है कोई ख़ाली असामी तो नहीं
अफ़ज़ल ख़ान