मुझे गुम-शुदा दिल का ग़म है तो ये है
कि इस में भरी थी मोहब्बत किसी की
अफ़सर इलाहाबादी
न हो या रब ऐसी तबीअत किसी की
कि हँस हँस के देखे मुसीबत किसी की
अफ़सर इलाहाबादी
तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो
तुम्हीं जिगर हो तुम्हीं जान हो तुम्हीं दिल हो
अफ़सर इलाहाबादी
ख़ुशनुमा दाएरे बनते ही चले जाते हैं
दिल के तालाब में फेंका है ये कंकर किस ने
अफ़सर आज़री
आ मेरे पास और कभी इस तरह चमक
मेरे बदन से भी तिरा साया तुलू'अ हो
अफ़सर जमशेद
न जाने इस क़दर क्यूँ आप दीवाने से डरते हैं
चराग़-ए-अंजुमन हैं और परवाने से डरते हैं
अफ़सर माहपुरी
है तेरे लिए सारा जहाँ हुस्न से ख़ाली
ख़ुद हुस्न अगर तेरी निगाहों में नहीं है
अफ़सर मेरठी