हलाल रिज़्क़ का मतलब किसान से पूछो
पसीना बन के बदन से लहू निकलता है
अादिल रशीद
मैं ज़ेहनी तौर से आज़ाद होने लगता हूँ
मिरे शुऊर मुझे अपनी हद के अंदर खींच
अफ़रोज़ आलम
ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद
अफ़रोज़ आलम
ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद
अफ़रोज़ आलम
क़ुर्बतें भी दूरियों का बन गईं अक्सर सबब
इस लिए बेहतर है उन की बे-रुख़ी बाक़ी रहे
अफ़रोज़ तालिब
हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता
अगर मर मर के ज़िंदा कोहकन होता तो क्या होता
अफ़सर इलाहाबादी
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
अफ़सर इलाहाबादी