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तेरी ख़ुशबू का तराशा है ये पैकर किस ने | शाही शायरी
teri KHushbu ka tarasha hai ye paikar kis ne

ग़ज़ल

तेरी ख़ुशबू का तराशा है ये पैकर किस ने

अफ़सर आज़री

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तेरी ख़ुशबू का तराशा है ये पैकर किस ने
कर दिया है मिरा माहौल मोअत्तर किस ने

आसमाँ हिम्मत-ए-परवाज़ से कुछ दूर नहीं
इस तमन्ना के मगर काट लिए पर किस ने

ना-समझ क़तरा-ए-नाचीज़ की वक़अत को समझ
तू समुंदर है बनाया है समुंदर किस ने

किस की पाज़ेब का संगीत है हस्ती मेरी
पाँव से बाँध लिया मेरा मुक़द्दर किस ने

परतव-ए-हुस्न है नाहीद गुज़र-गाह-ए-ख़याल
सर पे रक्खी है छलकती हुई गागर किस ने

ख़ुशनुमा दाएरे बनते ही चले जाते हैं
दिल के तालाब में फेंका है ये कंकर किस ने

तू मेरा दोस्त सही यार मगर ये तो बता
वक़्त ये धोका दिया है मुझे अक्सर किस ने

दफ़अतन किस ने जगा दी मिरी सोई क़िस्मत
मेरा मुँह चूम लिया ख़्वाब में 'अफ़सर' किस ने