EN اردو
वहशत रज़ा अली कलकत्वी शायरी | शाही शायरी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी शेर

54 शेर

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
ये मयस्सर हो तो फिर क्यूँ कोई नाशाद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
अंदाज़-ए-ज़माना कहता है पूरी हो तमन्ना मुश्किल है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




अभी होते अगर दुनिया में 'दाग़'-ए-देहलवी ज़िंदा
तो वो सब को बता देते है 'वहशत' की ज़बाँ कैसी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
आग़ाज़ बता देता है अंजाम तुम्हारा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
तारीक शब को तू ने दरख़्शाँ बना दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




और इशरत की तमन्ना क्या करें
सामने तू हो तुझे देखा करें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




अज़ीज़ अगर नहीं रखता न रख ज़लील ही रख
मगर निकाल न तू अपनी अंजुमन से मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




बढ़ चली है बहुत हया तेरी
मुझ को रुस्वा न कर ख़ुदा के लिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी




बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में
कि रुख़्सत हो गया उस का हिजाब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी