'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
जान देता है क्यूँ वफ़ा के लिए
आश्ना सब हुए हैं बेगाने
एक बेगाना-आश्ना के लिए
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
एक माशूक़-ए-बेवफ़ा के लिए
था उसे ज़ौक़-ए-आशिक़-आज़ारी
ख़ूब मैं ने मज़े जफ़ा के लिए
ग़ालिब आई फ़रामुशी उस की
वादा तड़पा किया वफ़ा के लिए
ये भी तेरी गदा-नवाज़ी थी
मैं ने बोसे जो नक़्श-ए-पा के लिए
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा ने किया है ख़ाक
सुर्मा हूँ चश्म-ए-सुर्मा-सा के लिए
जुस्तुजू नंग-ए-आरज़ू निकली
दर्द रुस्वा हुआ दवा के लिए
बढ़ चली है बहुत हया तेरी
मुझ को रुस्वा न कर ख़ुदा के लिए
है ख़मोशी मुझे ज़बाँ 'वहशत'
फ़िक्र क्या अर्ज़-ए-मुद्दआ के लिए
ग़ज़ल
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
वहशत रज़ा अली कलकत्वी