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ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा | शाही शायरी
ai ahl-e-wafa KHak bane kaam tumhaara

ग़ज़ल

ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
आग़ाज़ बता देता है अंजाम तुम्हारा

जाते हो कहाँ इश्क़ के बेदाद-कशो तुम
उस अंजुमन-ए-नाज़ में क्या काम तुम्हारा

ऐ दीदा ओ दिल कुछ तो करो ज़ब्त ओ तहम्मुल
लबरेज़ मय-ए-शौक़ से है जाम तुम्हारा

ऐ काश मिरे क़त्ल ही का मुज़्दा वो होता
आता किसी सूरत से तो पैग़ाम तुम्हारा

'वहशत' हो मुबारक तुम्हें बदमस्ती ओ रिंदी
जुज़ इश्क़-ए-बुताँ और है क्या काम तुम्हारा