दिल में घुट घुट कर इन्हें रहते ज़माना हो गया
मेरी फ़रियादें भी अब आमादा-ए-फ़रियाद हैं
नूह नारवी
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दिल को तुम शौक़ से ले जाओ मगर याद रहे
ये न मेरा न तुम्हारा न किसी का होगा
नूह नारवी
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दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
नूह नारवी
दिल जो दे कर किसी काफ़िर को परेशाँ हो जाए
आफ़ियत उस की है इस में कि मुसलमाँ हो जाए
नूह नारवी
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दिल अपना कहीं ठहरे तो हम भी कहीं ठहरें
इस कूचे में आ रहना उस कूचे में जा रहना
नूह नारवी
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दिखाए पाँच आलम इक पयाम-ए-शौक़ ने मुझ को
उलझना रूठना लड़ना बिगड़ना दूर हो जाना
नूह नारवी
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