EN اردو
नूह नारवी शायरी | शाही शायरी

नूह नारवी शेर

87 शेर

कहीं न उन की नज़र से नज़र किसी की लड़े
वो इस लिहाज़ से आँखें झुकाए बैठे हैं

नूह नारवी




कह रही है ये तिरी तस्वीर भी
मैं किसी से बोलने वाली नहीं

नूह नारवी




काबा हो कि बुत-ख़ाना हो ऐ हज़रत-ए-वाइज़
जाएँगे जिधर आप न जाएँगे उधर हम

नूह नारवी




का'बा हो दैर हो दोनों में है जल्वा उस का
ग़ौर से देखे अगर देखने वाला उस का

नूह नारवी




जो वक़्त जाएगा वो पलट कर न आएगा
दिन रात चाहिए सहर-ओ-शाम का लिहाज़

नूह नारवी




जो अहल-ए-ज़ौक़ हैं वो लुत्फ़ उठा लेते हैं चल फिर कर
गुलिस्ताँ का गुलिस्ताँ में बयाबाँ का बयाबाँ में

नूह नारवी




जिगर की चोट ऊपर से कहीं मा'लूम होती है
जिगर की चोट ऊपर से नहीं मा'लूम होती है

नूह नारवी




जब ज़िक्र किया मैं ने कभी वस्ल का उन से
वो कहने लगे पाक मोहब्बत है बड़ी चीज़

नूह नारवी




जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस
हम ग़म-ज़दों के वास्ते जैसे चमन वैसे क़फ़स

नूह नारवी