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नूह नारवी शायरी | शाही शायरी

नूह नारवी शेर

87 शेर

साक़ी जो दिल से चाहे तो आए वो ज़माना
हर शख़्स हो शराबी हर घर शराब-ख़ाना

नूह नारवी




पूरी न अगर हो तो कोई चीज़ नहीं है
निकले जो मिरे दिल से तो हसरत है बड़ी चीज़

नूह नारवी




पामाल हो के भी न उठा कू-ए-यार से
मैं उस गली में साया-ए-दीवार हो गया

नूह नारवी




नूह बैठे हैं चारपाई पर
चारपाई पे नूह बैठे हैं

नूह नारवी




न मिलो खुल के तो चोरी की मुलाक़ात रहे
हम बुलाएँगे तुम्हें रात गए रात रहे

नूह नारवी




मुझ को ये फ़िक्र कि दिल मुफ़्त गया हाथों से
उन को ये नाज़ कि हम ने उसे छीना कैसा

नूह नारवी




मुझ को नज़रों के लड़ाने से है काम
आप को आँखें दिखाने से ग़रज़

नूह नारवी




मुझ को ख़याल-ए-अबरू-ए-ख़मदार हो गया
ख़ंजर तिरा गले का मिरे हार हो गया

नूह नारवी




ऐ 'नूह' तौबा इश्क़ से कर ली थी आप ने
फिर ताँक-झाँक क्यूँ है ये फिर देख-भाल क्या

नूह नारवी