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ख़ुर्शीद रिज़वी शायरी | शाही शायरी

ख़ुर्शीद रिज़वी शेर

25 शेर

जिस्म की चौखट पे ख़म दिल की जबीं कर दी गई
आसमाँ की चीज़ क्यूँ सर्फ़-ए-ज़मीं कर दी गई

ख़ुर्शीद रिज़वी




आख़िर को हँस पड़ेंगे किसी एक बात पर
रोना तमाम उम्र का बे-कार जाएगा

ख़ुर्शीद रिज़वी




हम कि अपनी राह का पत्थर समझते हैं उसे
हम से जाने किस लिए दुनिया न ठुकराई गई

ख़ुर्शीद रिज़वी




हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब
ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते

ख़ुर्शीद रिज़वी




बिखर गया तो मुझे कोई ग़म नहीं इस का
कि राज़ मुझ पे कई वा हुए बिखरते हुए

ख़ुर्शीद रिज़वी




बस दरीचे से लगे बैठे रहे अहल-ए-सफ़र
सब्ज़ा जलता रहा और याद-ए-वतन आती रही

ख़ुर्शीद रिज़वी




बहुत से रोग दुआ माँगने से जाते हैं
ये बात ख़ूगर-ए-रस्म-ए-दवा से कौन कहे

ख़ुर्शीद रिज़वी




अक्स ने मेरे रुलाया है मुझे
कोई अपना नज़र आया है मुझे

ख़ुर्शीद रिज़वी




अब से पहले वो मिरी ज़ात पे तारी तो न था
दिल में रहता था मगर ख़ून में जारी तो न था

ख़ुर्शीद रिज़वी