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वो मुझे ख़ाक से बाहर नहीं जाने देते | शाही शायरी
wo mujhe KHak se bahar nahin jaane dete

ग़ज़ल

वो मुझे ख़ाक से बाहर नहीं जाने देते

ख़ुर्शीद रिज़वी

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वो मुझे ख़ाक से बाहर नहीं जाने देते
दस्त-ए-साहिल से समुंदर नहीं जाने देते

सतह पर आए हुए बन के कफ़ ओ मौज ओ हुबाब
ज़ेर-ए-दरिया यही गौहर नहीं जाने देते

हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब
ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते

मुझ को इस गुम्बद-ए-बे-दर से परे का भी है ज़ौक़
ये मिरे बाल मिरे पर नहीं जाने देते

हद्द-ए-अफ़्लाक पे जा कर तो सदा दे आया
मगर अफ़्लाक से ऊपर नहीं जाने देते