वो मुझे ख़ाक से बाहर नहीं जाने देते
दस्त-ए-साहिल से समुंदर नहीं जाने देते
सतह पर आए हुए बन के कफ़ ओ मौज ओ हुबाब
ज़ेर-ए-दरिया यही गौहर नहीं जाने देते
हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब
ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते
मुझ को इस गुम्बद-ए-बे-दर से परे का भी है ज़ौक़
ये मिरे बाल मिरे पर नहीं जाने देते
हद्द-ए-अफ़्लाक पे जा कर तो सदा दे आया
मगर अफ़्लाक से ऊपर नहीं जाने देते
ग़ज़ल
वो मुझे ख़ाक से बाहर नहीं जाने देते
ख़ुर्शीद रिज़वी