बना रहे कोई दम नक़्श-ए-पा से कौन कहे
अभी न ख़ाक उड़ाए हवा से कौन कहे
पए नशात नफ़स-दो-नफ़्स बचा के रखे
ये मुद्दआ' दिल-ए-बे-मुद्दआ से कौन कहे
गई तो बू ही नहीं रंग भी गुलों से गया
पलट के बाग़ में आए सबा से कौन कहे
वो मुल्तफ़ित हैं मगर अब हमें दिमाग़ नहीं
कहे हुए को फिर अब इब्तिदा से कौन कहे
बहुत से रोग दुआ माँगने से जाते हैं
ये बात ख़ूगर-ए-रस्म-ए-दवा से कौन कहे
वो दिल का दर्द वो ना-गुफ़्तनी सुख़न 'ख़ुर्शीद'
ख़ुदा से कह लिया ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से कौन कहे
ग़ज़ल
बना रहे कोई दम नक़्श-ए-पा से कौन कहे
ख़ुर्शीद रिज़वी