दिन गुज़रते रहे साँसों में थकन आती रही
दिल में उड़ उड़ के वही गर्द-ए-मेहन आती रही
थक गए अर्सा-ए-एहसास में चलते चलते
राह में हसरत-ए-कोताही-ए-फ़न आती रही
बस दरीचे से लगे बैठे रहे अहल-ए-सफ़र
सब्ज़ा जलता रहा और याद-ए-वतन आती रही
गुलशन-ए-दहर में कुछ बू-ए-वफ़ा बाक़ी है
कि ख़िज़ाँ में भी सबा सू-ए-चमन आती रही
फूल आँखों से गुज़र कर तह-ए-दिल में भी खिला
रुत भी बदली तो वही बू-ए-समन आती रही
अहल-ए-दुनिया ज़र-ओ-गौहर की तमन्ना में रहे
ओस पड़ती रही सूरज की किरन आती रही
हम कभी चाक-गरेबाँ थे कभी ख़ाक-बसर
कर गुज़रते रहे जो इश्क़ में बन आती रही
ग़ज़ल
दिन गुज़रते रहे साँसों में थकन आती रही
ख़ुर्शीद रिज़वी