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अब से पहले वो मिरी ज़ात पे तारी तो न था | शाही शायरी
ab se pahle wo meri zat pe tari to na tha

ग़ज़ल

अब से पहले वो मिरी ज़ात पे तारी तो न था

ख़ुर्शीद रिज़वी

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अब से पहले वो मिरी ज़ात पे तारी तो न था
दिल में रहता था मगर ख़ून में जारी तो न था

नब्ज़ चलती है तो क़दमों की सदा आती है
इस क़दर ज़ख़्म-ए-जुदाई कभी कारी तो न था

वो तो बादल का बरसना है अनासिर का उसूल
वर्ना अश्कों का नमक आँख पे भारी तो न था

दिल में खिलते हैं तिरी याद के एजाज़ से फूल
इस में कुछ शाइबा-ए-बाद-ए-बहारी तो न था

ये भी अंदर का कोई रोग है वर्ना हम को
उम्र-भर हौसला-ए-नाला-ओ-ज़ारी तो न था