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हैदर अली आतिश शायरी | शाही शायरी

हैदर अली आतिश शेर

89 शेर

तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल
हम से ख़िलाफ़ हो के करेगा ज़माना क्या

हैदर अली आतिश




सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ग़ाएबाना क्या

हैदर अली आतिश




सिवाए रंज कुछ हासिल नहीं है इस ख़राबे में
ग़नीमत जान जो आराम तू ने कोई दम पाया

हैदर अली आतिश




शीरीं के शेफ़्ता हुए परवेज़ ओ कोहकन
शाएर हूँ मैं ये कहता हूँ मज़मून लड़ गया

हैदर अली आतिश




शहर में क़ाफ़िया-पैमाई बहुत की 'आतिश'
अब इरादा है मिरा बादिया-पैमाई का

हैदर अली आतिश




शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
बग़ल में सनम था ख़ुदा मेहरबाँ था

हैदर अली आतिश




सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ में
आराम की तलाश में ईज़ा उठाइए

हैदर अली आतिश




सफ़र है शर्त मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे
हज़ार-हा शजर-ए-साया-दार राह में है

हैदर अली आतिश




रख के मुँह सो गए हम आतिशीं रुख़्सारों पर
दिल को था चैन तो नींद आ गई अँगारों पर

हैदर अली आतिश