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हैदर अली आतिश शायरी | शाही शायरी

हैदर अली आतिश शेर

89 शेर

क़ैद-ए-मज़हब की गिरफ़्तारी से छुट जाता है
हो न दीवाना तो है अक़्ल से इंसाँ ख़ाली

हैदर अली आतिश




मर्द-ए-दरवेश हूँ तकिया है तवक्कुल मेरा
ख़र्च हर रोज़ है याँ आमद-ए-बालाई का

हैदर अली आतिश




मसनद-ए-शाही की हसरत हम फ़क़ीरों को नहीं
फ़र्श है घर में हमारे चादर-ए-महताब का

we mendicants do not long for royal quilted thrones
our homes have floors

हैदर अली आतिश




मस्त हाथी है तिरी चश्म-ए-सियह-मस्त ऐ यार
सफ़-ए-मिज़्गाँ उसे घेरे हुए है भालों से

हैदर अली आतिश




मेहंदी लगाने का जो ख़याल आया आप को
सूखे हुए दरख़्त हिना के हरे हुए

हैदर अली आतिश




मिरी तरह से मह-ओ-महर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते

हैदर अली आतिश




न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे

हैदर अली आतिश




न जब तक कोई हम-प्याला हो मैं मय नहीं पीता
नहीं मेहमाँ तो फ़ाक़ा है ख़लीलुल्लाह के घर में

हैदर अली आतिश




न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं

हैदर अली आतिश