मय-कदे में नश्शा की ऐनक दिखाती है मुझे
आसमाँ मस्त ओ ज़मीं मस्त ओ दर-ओ-दीवार मस्त
हैदर अली आतिश
मैं वो ग़म-दोस्त हूँ जब कोई ताज़ा ग़म हुआ पैदा
न निकला एक भी मेरे सिवा उम्मीद-वारों में
हैदर अली आतिश
मैं उस गुलशन का बुलबुल हूँ बहार आने नहीं पाती
कि सय्याद आन कर मेरा गुलिस्ताँ मोल लेते हैं
हैदर अली आतिश
लिबास-ए-काबा का हासिल किया शरफ़ उस ने
जो कू-ए-यार में काली कोई घटा आई
हैदर अली आतिश
लगे मुँह भी चिढ़ाने देते देते गालियाँ साहब
ज़बाँ बिगड़ी तो बिगड़ी थी ख़बर लीजे दहन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
कू-ए-जानाँ में भी अब इस का पता मिलता नहीं
दिल मिरा घबरा के क्या जाने किधर जाता रहा
हैदर अली आतिश
कूचा-ए-यार में हो रौशनी अपने दम की
काबा ओ दैर करें गब्र ओ मुसलमाँ आबाद
हैदर अली आतिश
कुफ़्र ओ इस्लाम की कुछ क़ैद नहीं ऐ 'आतिश'
शैख़ हो या कि बरहमन हो पर इंसाँ होवे
हैदर अली आतिश
कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा
हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया
save visions of her, nothing comes to mind
the longing for her sight surely turned me blind
हैदर अली आतिश