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हवा-ए-दौर-ए-मय-ए-ख़ुश-गवार राह में है | शाही शायरी
hawa-e-daur-e-mai-e-KHush-gawar rah mein hai

ग़ज़ल

हवा-ए-दौर-ए-मय-ए-ख़ुश-गवार राह में है

हैदर अली आतिश

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हवा-ए-दौर-ए-मय-ए-ख़ुश-गवार राह में है
ख़िज़ाँ चमन से है जाती बहार राह में है

गदा-नवाज़ कोई शहसवार राह में है
बुलंद आज निहायत ग़ुबार राह में है

अदम के कूच की लाज़िम है फ़िक्र हस्ती में
न कोई शहर न कोई दयार राह में है

न बदरक़ा है न कोई रफ़ीक़ साथ अपने
फ़क़त इनायत-ए-परवर-दिगार राह में है

सफ़र है शर्त मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे
हज़ार-हा शजर-ए-साया-दार राह में है

मक़ाम तक भी हम अपने पहुँच ही जाएँगे
ख़ुदा तो दोस्त है दुश्मन हज़ार राह में है

थकें जो पाँव तो चल सर के बल न ठहर 'आतिश'
गुल-ए-मुराद है मंज़िल में ख़ार राह में है