कौन से दिन हाथ में आया मिरे दामान-ए-यार
कब ज़मीन-ओ-आसमाँ का फ़ासला जाता रहा
हैदर अली आतिश
करता है क्या ये मोहतसिब-ए-संग-दिल ग़ज़ब
शीशों के साथ दिल न कहीं चूर चूर हों
हैदर अली आतिश
काट कर पर मुतमइन सय्याद बे-परवा न हो
रूह बुलबुल की इरादा रखती है परवाज़ का
having shorn its wings O hunter, be not complacent
the soul of the nightingale to soar is now intent
हैदर अली आतिश
काबा ओ दैर में है किस के लिए दिल जाता
यार मिलता है तो पहलू ही में है मिल जाता
हैदर अली आतिश
जो देखते तिरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलम
असीर होने की आज़ाद आरज़ू करते
हैदर अली आतिश
जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैं
सुराही सर-निगूँ हो कर भरा करती है पैमाना
हैदर अली आतिश
आए भी लोग बैठे भी उठ भी खड़े हुए
मैं जा ही ढूँडता तिरी महफ़िल में रह गया
in your presence others were seated with charm and grace
whilst I remained unheeded, for me there was no place
हैदर अली आतिश
ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करते
यार आग़ोश में ख़ुर्शीद हमल में होता
हैदर अली आतिश
हर शब शब-ए-बरात है हर रोज़ रोज़-ए-ईद
सोता हूँ हाथ गर्दन-ए-मीना में डाल के
each night is a night of love, each day a day divine
I sleep with my arms entwined around a flask of wine
हैदर अली आतिश