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हैदर अली आतिश शायरी | शाही शायरी

हैदर अली आतिश शेर

89 शेर

आप की नाज़ुक कमर पर बोझ पड़ता है बहुत
बढ़ चले हैं हद से गेसू कुछ इन्हें कम कीजिए

हैदर अली आतिश




आज तक अपनी जगह दिल में नहीं अपने हुई
यार के दिल में भला पूछो तो घर क्यूँ-कर करें

हैदर अली आतिश




आफ़त-ए-जाँ हुई उस रू-ए-किताबी की याद
रास आया न मुझे हाफ़िज़-ए-क़ुरआँ होना

हैदर अली आतिश




आदमी क्या वो न समझे जो सुख़न की क़द्र को
नुत्क़ ने हैवाँ से मुश्त-ए-ख़ाक को इंसाँ किया

हैदर अली आतिश




इलाही एक दिल किस किस को दूँ मैं
हज़ारों बुत हैं याँ हिन्दोस्तान है

हैदर अली आतिश




कोई बुत-ख़ाने को जाता है कोई काबे को
फिर रहे गब्र ओ मुसलमाँ हैं तिरी घात में क्या

हैदर अली आतिश




किसी ने मोल न पूछा दिल-ए-शिकस्ता का
कोई ख़रीद के टूटा पियाला क्या करता

हैदर अली आतिश




किसी की महरम-ए-आब-ए-रवाँ की याद आई
हबाब के जो बराबर कभी हबाब आया

हैदर अली आतिश




ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की
ये बेकसों के मज़ारों का शामियाना है

हैदर अली आतिश