दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसे
कलाम आते हैं दरमियाँ कैसे कैसे
ज़मीन-ए-चमन गुल खिलाती है क्या क्या
बदलता है रंग आसमाँ कैसे कैसे
तुम्हारे शहीदों में दाख़िल हुए हैं
गुल-ओ-लाला-ओ-अर्ग़वाँ कैसे कैसे
बहार आई है नश्शे में झूमते हैं
मुरीदान-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कैसे कैसे
अजब क्या छुटा रूह से जामा-ए-तन
लुटे राह में कारवाँ कैसे कैसे
तप-ए-हिज्र की काहिशों ने किए हैं
जुदा पोस्त से उस्तुख़्वाँ कैसे कैसे
न मुड़ कर भी बे-दर्द क़ातिल ने देखा
तड़पते रहे नीम-जाँ कैसे कैसे
न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा
मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे
बहार-ए-गुलिस्ताँ की है आमद आमद
ख़ुशी फिरते हैं बाग़बाँ कैसे कैसे
तवज्जोह ने तेरी हमारे मसीहा
तवाना किए ना-तवाँ कैसे कैसे
दिल-ओ-दीदा-ए-अहल-ए-आलम में घर है
तुम्हारे लिए हैं मकाँ कैसे कैसे
ग़म-ओ-ग़ुस्सा ओ रंज-ओ-अंदोह-ओ-हिर्मां
हमारे भी हैं मेहरबाँ कैसे कैसे
तिरे किल्क-ए-क़ुदरत के क़ुर्बान आँखें
दिखाए हैं ख़ुश-रू जवाँ कैसे कैसे
करे जिस क़दर शुक्र-ए-नेअमत वो कम है
मज़े लूटती है ज़बाँ कैसे कैसे
ग़ज़ल
दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसे
हैदर अली आतिश