आए भी लोग बैठे भी उठ भी खड़े हुए
मैं जा ही ढूँडता तिरी महफ़िल में रह गया
in your presence others were seated with charm and grace
whilst I remained unheeded, for me there was no place
हैदर अली आतिश
आदमी क्या वो न समझे जो सुख़न की क़द्र को
नुत्क़ ने हैवाँ से मुश्त-ए-ख़ाक को इंसाँ किया
हैदर अली आतिश
आफ़त-ए-जाँ हुई उस रू-ए-किताबी की याद
रास आया न मुझे हाफ़िज़-ए-क़ुरआँ होना
हैदर अली आतिश
आज तक अपनी जगह दिल में नहीं अपने हुई
यार के दिल में भला पूछो तो घर क्यूँ-कर करें
हैदर अली आतिश
आप की नाज़ुक कमर पर बोझ पड़ता है बहुत
बढ़ चले हैं हद से गेसू कुछ इन्हें कम कीजिए
हैदर अली आतिश
आसार-ए-इश्क़ आँखों से होने लगे अयाँ
बेदारी की तरक़्क़ी हुई ख़्वाब कम हुआ
हैदर अली आतिश
आसमान और ज़मीं का है तफ़ावुत हर-चंद
ऐ सनम दूर ही से चाँद सा मुखड़ा दिखला
हैदर अली आतिश
आतिश-ए-मस्त जो मिल जाए तो पूछूँ उस से
तू ने कैफ़िय्यत उठाई है ख़राबात में क्या
हैदर अली आतिश
ऐ फ़लक कुछ तो असर हुस्न-ए-अमल में होता
शीशा इक रोज़ तो वाइज़ के बग़ल में होता
हैदर अली आतिश