EN اردو
फ़रहत एहसास शायरी | शाही शायरी

फ़रहत एहसास शेर

70 शेर

कभी इस रौशनी की क़ैद से बाहर भी निकलो तुम
हुजूम-ए-हुस्न ने सारा सरापा घेर रक्खा है

फ़रहत एहसास




जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
ख़ुद को बहाल करना है खोना नहीं है आज

फ़रहत एहसास




जिस्म का कूज़ा है अपना और न ये दरिया-ए-जाँ
जो लगा लेगा लबों से उस में भर जाएँगे हम

फ़रहत एहसास




जिसे भी प्यास बुझानी हो मेरे पास रहे
कभी भी अपने लबों से छलकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास




जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
तो अपने ख़्वाब की पलकें झपकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास




जान ये सरकशी-ए-जिस्म तिरे बस की नहीं
मेरी आग़ोश में आ ला ये मुसीबत मुझे दे

फ़रहत एहसास




इश्क़ में पीने का पानी बस आँख का पानी
खाने में बस पत्थर खाए जा सकते थे

फ़रहत एहसास




इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते

फ़रहत एहसास




आ मुझे छू के हरा रंग बिछा दे मुझ पर
मैं भी इक शाख़ सी रखता हूँ शजर करने को

फ़रहत एहसास