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फ़रहत एहसास शायरी | शाही शायरी

फ़रहत एहसास शेर

70 शेर

कौन सी ऐसी ख़ुशी है जो मिली हो एक बार
और ता-उम्र हमें जिस ने अज़िय्यत नहीं दी

फ़रहत एहसास




तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं

फ़रहत एहसास




तमाम शहर की आँखों में रेज़ा रेज़ा हूँ
किसी भी आँख से उठता नहीं मुकम्मल मैं

फ़रहत एहसास




तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात
मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता

फ़रहत एहसास




तभी वहीं मुझे उस की हँसी सुनाई पड़ी
मैं उस की याद में पलकें भिगोने वाला था

फ़रहत एहसास




शुस्ता ज़बाँ शगुफ़्ता बयाँ होंठ गुल-फ़िशाँ
सारी हैं तुझ में ख़ूबियाँ उर्दू ज़बान की

फ़रहत एहसास




सर सलामत लिए लौट आए गली से उस की
यार ने हम को कोई ढंग की ख़िदमत नहीं दी

फ़रहत एहसास




सख़्त तकलीफ़ उठाई है तुझे जानने में
इस लिए अब तुझे आराम से पहचानते हैं

फ़रहत एहसास




बन न पाया हीर, राँझा अब भी राँझा है बहुत
देख वारिस-शाह तेरी हीर आधी रह गई

फ़रहत एहसास