EN اردو
फ़रहत एहसास शायरी | शाही शायरी

फ़रहत एहसास शेर

70 शेर

हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में
अक्सर दोनों गुल रहते हैं और जला करता हूँ मैं

फ़रहत एहसास




हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
शहर में जो भी हुआ है वो ख़ता मेरी है

फ़रहत एहसास




हमें जब अपना तआ'रुफ़ करना पड़ता है
न जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है

फ़रहत एहसास




हमें जब अपना तआ'रुफ़ कराना पड़ता है
न जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है

फ़रहत एहसास




हमारी आँखों में बस गया है अजीब पंजाब आँसुओं का
इधर से रावी चला उधर से चनाब तय्यार हो रहा है

फ़रहत एहसास




हमारा ज़िंदा रहना और मरना एक जैसा है
हम अपने यौम-ए-पैदाइश को भी बरसी समझते हैं

फ़रहत एहसास




फ़रार हो गई होती कभी की रूह मिरी
बस एक जिस्म का एहसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास