बे-तलब जो मिला मिला मुझ को
बे-ग़रज़ जो दिया दिया तू ने
दाग़ देहलवी
बे-ज़बानी ज़बाँ न हो जाए
राज़-ए-उल्फ़त अयाँ न हो जाए
दाग़ देहलवी
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
किसी से आज बिगड़ी है कि वो यूँ बन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
चाह की चितवन में आँख उस की शरमाई हुई
ताड़ ली मज्लिस में सब ने सख़्त रुस्वाई हुई
दाग़ देहलवी
चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं
वर्ना ये हाथ गिरेबान से कुछ दूर नहीं
दाग़ देहलवी
छेड़ माशूक़ से कीजे तो ज़रा थम थम कर
रोज़ के नामा ओ पैग़ाम बुरे होते हैं
दाग़ देहलवी
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद
दाग़ देहलवी
'दाग़' को कौन देने वाला था
जो दिया ऐ ख़ुदा दिया तू ने
दाग़ देहलवी