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आरज़ू लखनवी शायरी | शाही शायरी

आरज़ू लखनवी शेर

78 शेर

दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
उलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर

आरज़ू लखनवी




आप अपने से बरहमी कैसी
मैं नहीं कोई और है ये भी

आरज़ू लखनवी




बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से
चमन में आ के भी काँटा गुलाब हो न सका

आरज़ू लखनवी




भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं
पहले आता था अब नहीं आता

आरज़ू लखनवी




भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो

आरज़ू लखनवी




बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
घर तो मालूम था रस्ता मुझे मालूम न था

आरज़ू लखनवी




अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी

आरज़ू लखनवी




अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें
दो सितारे फिर किसी दिन एक जा हो जाएँगे

आरज़ू लखनवी




अल्लाह अल्लाह हुस्न की ये पर्दा-दारी देखिए
भेद जिस ने खोलना चाहा वो दीवाना हुआ

आरज़ू लखनवी