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आरज़ू लखनवी शायरी | शाही शायरी

आरज़ू लखनवी शेर

78 शेर

दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
या तुम न हसीं होते या में न जवाँ होता

आरज़ू लखनवी




दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार
कल ये कुछ और कहेगा मुझे मालूम न था

आरज़ू लखनवी




धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
सब बहते हुए दरियाओं के क्या दो ही किनारे होते हैं

आरज़ू लखनवी




देखें महशर में उन से क्या ठहरे
थे वही बुत वही ख़ुदा ठहरे

आरज़ू लखनवी




है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके
कोई अहद तोड़े करे दग़ा मिरा फ़र्ज़ है कि वफ़ा करूँ

आरज़ू लखनवी




चटकी जो कली कोयल कूकी उल्फ़त की कहानी ख़त्म हुई
क्या किस ने कही क्या तू ने सुनी ये बात ज़माना क्या जाने

आरज़ू लखनवी




बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से
चमन में आ के भी काँटा गुलाब हो न सका

आरज़ू लखनवी




भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं
पहले आता था अब नहीं आता

आरज़ू लखनवी




भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो

आरज़ू लखनवी