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आरज़ू लखनवी शायरी | शाही शायरी

आरज़ू लखनवी शेर

78 शेर

बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
घर तो मालूम था रस्ता मुझे मालूम न था

आरज़ू लखनवी




अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी

आरज़ू लखनवी




अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें
दो सितारे फिर किसी दिन एक जा हो जाएँगे

आरज़ू लखनवी




अल्लाह अल्लाह हुस्न की ये पर्दा-दारी देखिए
भेद जिस ने खोलना चाहा वो दीवाना हुआ

आरज़ू लखनवी




'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
पी लो और दहशत-ए-गुनाह गई

आरज़ू लखनवी




इस छेड़ में बनते हैं होश्यार भी दीवाने
लहराया जहाँ शो'ला अंधे हुए परवाने

आरज़ू लखनवी




कह के ये और कुछ कहा न गया
कि मुझे आप से शिकायत है

आरज़ू लखनवी




जोश-ए-जुनूँ में वो तिरे वहशी का चीख़ना
बंद अपने हाथ से दर-ए-ज़िंदाँ किए हुए

आरज़ू लखनवी




जो कान लगा कर सुनते हैं क्या जानें रुमूज़ मोहब्बत के
अब होंट नहीं हिलने पाते और पहरों बातें होती हैं

आरज़ू लखनवी