EN اردو
अनवर शऊर शायरी | शाही शायरी

अनवर शऊर शेर

53 शेर

सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह

अनवर शऊर




तेरी आस पे जीता था मैं वो भी ख़त्म हुई
अब दुनिया में कौन है मेरा कोई नहीं मेरा

अनवर शऊर




था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया

अनवर शऊर




ठहर सकती है कहाँ उस रुख़-ए-ताबाँ पे नज़र
देख सकता है उसे आदमी बंद आँखों से

अनवर शऊर




तिरे होते जो जचती ही नहीं थी
वो सूरत आज ख़ासी लग रही है

अनवर शऊर




वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती
मिरी ख़ताएँ मिरी लग़्ज़िशें ही ऐसी थीं

अनवर शऊर




वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद
कभी न फिर नए कपड़े पहन के निकला मैं

अनवर शऊर




ज़माने के झमेलों से मुझे क्या
मिरी जाँ! मैं तुम्हारा आदमी हूँ

अनवर शऊर




ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ
हसरतों में शुमार होता है

अनवर शऊर