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उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से | शाही शायरी
unki surat hamein aai thi pasand aankhon se

ग़ज़ल

उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से

अनवर शऊर

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उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से
और फिर हो गई बाला-ओ-बुलंद आँखों से

कोई ज़ंजीर नहीं तार-ए-नज़र से मज़बूत
हम ने इस चाँद पे डाली है कमंद आँखों से

ठहर सकती है कहाँ उस रुख़-ए-ताबाँ पे नज़र
देख सकता है उसे आदमी बंद आँखों से

हम उठाते हैं मज़ा तल्ख़ी ओ शीरीनी का
मय पियाले से पिलाता है वो क़ंद आँखों से

बात करते हो तो होता है ज़बाँ से सदमा
देखते हो तो पहुँचता है गज़ंद आँखों से

हर मुलाक़ात में होती हैं हमारे माबैन
चंद बातें लब-ए-गुफ़्तार से चंद आँखों से

इश्क़ में हौसला-मंदी भी ज़रूरी है 'शुऊर'
देखिए उस की तरफ़ हौसला-मंद आँखों से