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अल्लामा इक़बाल शायरी | शाही शायरी

अल्लामा इक़बाल शेर

118 शेर

तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं

अल्लामा इक़बाल




सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

अल्लामा इक़बाल




सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ

अल्लामा इक़बाल




तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में

serve mendicants if you desire empathy to gain
treasuries of emperors do not this wealth contain

अल्लामा इक़बाल




तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र

अल्लामा इक़बाल




तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

अल्लामा इक़बाल




तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

अल्लामा इक़बाल




उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं

अल्लामा इक़बाल




तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

अल्लामा इक़बाल