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तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र | शाही शायरी
tu abhi rahguzar mein hai qaid-e-maqam se guzar

ग़ज़ल

तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र

अल्लामा इक़बाल

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तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
मिस्र ओ हिजाज़ से गुज़र पारस ओ शाम से गुज़र

जिस का अमल है बे-ग़रज़ उस की जज़ा कुछ और है
हूर ओ ख़ियाम से गुज़र बादा-ओ-जाम से गुज़र

गरचे है दिल-कुशा बहुत हुस्न-ए-फ़रंग की बहार
ताएरक-ए-बुलंद-बाल दाना-ओ-दाम से गुज़र

कोह-शिगाफ़ तेरी ज़र्ब तुझ से कुशाद-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब
तेग़-ए-हिलाल की तरह ऐश-ए-नियाम से गुज़र

तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र