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अल्लामा इक़बाल शायरी | शाही शायरी

अल्लामा इक़बाल शेर

118 शेर

आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही

अल्लामा इक़बाल




हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू

अल्लामा इक़बाल




गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है

go beyond knowledge for its illumination
is the lamp to light the way, not the destination

अल्लामा इक़बाल




गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
है देखने की चीज़ इसे बार बार देख

अल्लामा इक़बाल




ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें

अल्लामा इक़बाल




गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर

अल्लामा इक़बाल




गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
कहाँ से आए सदा ला इलाह इल-लल्लाह

अल्लामा इक़बाल




फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर

अल्लामा इक़बाल




फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं

अल्लामा इक़बाल