आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
अल्लामा इक़बाल
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी
अल्लामा इक़बाल
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही
अल्लामा इक़बाल
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
अल्लामा इक़बाल
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात
अल्लामा इक़बाल
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
अल्लामा इक़बाल
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
अल्लामा इक़बाल