साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले
अहमद फ़राज़
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होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है
अहमद मुश्ताक़
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जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
साहिल ने बहुत पूछा ख़ामोश रहा पानी
अहमद मुश्ताक़
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बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई
अजमल सिराज
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कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
अख़्तर होशियारपुरी
अस्र के वक़्त मेरे पास न बैठ
मुझ पे इक साँवली का साया है
अली ज़रयून
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साए ढलने चराग़ जलने लगे
लोग अपने घरों को चलने लगे
अमजद इस्लाम अमजद
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