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साए ढलने चराग़ जलने लगे | शाही शायरी
sae Dhalne charag jalne lage

ग़ज़ल

साए ढलने चराग़ जलने लगे

अमजद इस्लाम अमजद

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साए ढलने चराग़ जलने लगे
लोग अपने घरों को चलने लगे

इतनी पुर-पेच है भँवर की गिरह
जैसे नफ़रत दिलों में पलने लगे

दूर होने लगी जरस की सदा
कारवाँ रास्ते बदलने लगे

उस के लहजे में बर्फ़ थी लेकिन
छू के देखा तो हाथ जलने लगे

उस के बंद-ए-क़बा के जादू से
साँप से उँगलियों में चलने लगे

राह-ए-गुम-कर्दा ताएरों की तरह
फिर सितारे सफ़र पे चलने लगे

फिर निगाहों में धूल उड़ती है
अक्स फिर आइने बदलने लगे