EN اردو
ख़ावर जीलानी शायरी | शाही शायरी

ख़ावर जीलानी शेर

13 शेर

अपने सहरा से बंधे प्यास के मारे हुए हम
मुंतज़िर हैं कि इधर कोई कुआँ आ निकले

ख़ावर जीलानी




बनने वाली बात वही होती है वो जो
बनते बनते यकसर बनती रह जाती है

ख़ावर जीलानी




दिलों की शीशागरी कार-गह-ए-हस्ती में
हुनर के ज़ेर ओ ज़बर से भी टूट सकती थी

ख़ावर जीलानी




इक चिंगारी आग लगा जाती है बन में और कभी
एक किरन से ज़ुल्मत को छट जाना पड़ता है

ख़ावर जीलानी




जीना तो अलग बात है मरना भी यहाँ पर
हर शख़्स की अपनी ही ज़रूरत के लिए है

ख़ावर जीलानी




नहीं है कोई भी हतमी यहाँ हद-ए-मालूम
हर एक इंतिहा इक और इंतिहा तक है

ख़ावर जीलानी




सभी किरदार थक कर सो गए हैं
मगर अब तक कहानी चल रही है

ख़ावर जीलानी




सच्चाई वो जंग है जिस में बाज़ औक़ात सिपाही को
आप मुक़ाबिल अपने ही डट जाना पड़ता है

ख़ावर जीलानी




सुब्ह होती है तो कुंज-ए-ख़ुश-गुमानी में कहीं
फेंक दी जाती है शब भर की सियाही बाँध कर

ख़ावर जीलानी