वक़्त गुज़र जाता है लेकिन दिल की रंजिश
दिल में बैठी की बैठी ही रह जाती है
ख़ावर जीलानी
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वो कि बन पा नहीं रहा मुझ से
जो कि शायद बना रहा हूँ मैं
ख़ावर जीलानी
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वो कुछ से कुछ बना डालेगा तस्लीमात के मअनी
सलीक़ा आ गया उस को अगर इंकार करने का
ख़ावर जीलानी
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यूँही बेकार मैं पड़ा ख़ुद को
कार-आमद बना रहा हूँ मैं
ख़ावर जीलानी
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