EN اردو
बेहतर की गुंजाइश बाक़ी रह जाती है | शाही शायरी
behtar ki gunjaish baqi rah jati hai

ग़ज़ल

बेहतर की गुंजाइश बाक़ी रह जाती है

ख़ावर जीलानी

;

बेहतर की गुंजाइश बाक़ी रह जाती है
कमी कहीं पोशीदा कोई रह जाती है

मन-चाही तस्वीर बनाने में मुझ से
हुनर-वरी में कुछ कोताही रह जाती है

सैलाब आ जाने पर उस बस्ती की
सारी पुख़्ता-कारी कच्ची रह जाती है

बनने वाली बात वही होती है वो जो
बनते बनते यकसर बनती रह जाती है

रह जाती है आते आते आती साअत
होनी होते होते होती रह जाती है

वक़्त गुज़र जाता है लेकिन दिल की रंजिश
दिल में बैठी की बैठी ही रह जाती है

चलते रह जाते हैं रोज़ ओ शब के धंदे
गंगा उल्टी सीधी बहती रह जाती है

फाँक लिए जाने को ख़ाक मसाफ़त की
राहों पर ही छानी-फटकी रह जाती है

आ जाती है बिर्हा और दुल्हनियाँ छत पर
अपने गीले बाल सुखाती रह जाती है