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काशिफ़ हुसैन ग़ाएर शायरी | शाही शायरी

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर शेर

24 शेर

धूप साए की तरह फैल गई
इन दरख़्तों की दुआ लेने से

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




हमारे दिल की तरह शहर के ये रस्ते भी
हज़ार भेद छुपाए हुए से लगते हैं

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




हमारी ज़िंदगी पर मौत भी हैरान है 'ग़ाएर'
न जाने किस ने ये तारीख़-ए-पैदाइश निकाली है

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




इक दिन दुख की शिद्दत कम पड़ जाती है
कैसी भी हो वहशत कम पड़ जाती है

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




इन सितारों में कहीं तुम भी हो
इन नज़ारों में कहीं मैं भी हूँ

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




कल रात जगाती रही इक ख़्वाब की दूरी
और नींद बिछाती रही बिस्तर मिरे आगे

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




कुछ ऐसी भी दिल की बातें होती हैं
जिन बातों को ख़ल्वत कम पड़ जाती है

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




कुछ देर बैठ जाइए दीवार के क़रीब
क्या कह रहा है साया-ए-दीवार जानिए

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




क्या चाहती है हम से हमारी ये ज़िंदगी
क्या क़र्ज़ है जो हम से अदा हो नहीं रहा

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर