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मुद्दत से कोई शोर बपा हो नहीं रहा | शाही शायरी
muddat se koi shor bapa ho nahin raha

ग़ज़ल

मुद्दत से कोई शोर बपा हो नहीं रहा

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर

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मुद्दत से कोई शोर बपा हो नहीं रहा
और हाथ है कि दिल से जुदा हो नहीं रहा

इक सुब्ह थी जो शाम में तब्दील हो गई
इक रंग है जो रंग-ए-हिना हो नहीं रहा

हम भी वही दिया भी वही रात भी वही
क्या बात है जो रक़्स-ए-हवा हो नहीं रहा

हम भी किसी ख़याल के सन्नाहटों में गुम
तुम से भी पास-ए-अहद-ए-वफ़ा हो नहीं रहा

क्या चाहती है हम से हमारी ये ज़िंदगी
क्या क़र्ज़ है जो हम से अदा हो नहीं रहा