कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से
तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से
फ़रहत अब्बास शाह
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मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ
तो कुछ सहाब मिरे साथ साथ चलते हैं
फ़रहत अब्बास शाह
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उस के बारे में बहुत सोचता हूँ
मुझ से बिछड़ा तो किधर जाएगा
फ़रहत अब्बास शाह
उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की
वो आ के मेरे दर-ओ-बाम ले गया मुझ से
फ़रहत अब्बास शाह
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