तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं
कई सराब मिरे साथ साथ चलते हैं
तुम्हारा ग़म ग़म-ए-दुनिया उलूम-ए-आगाही
सभी अज़ाब मिरे साथ साथ चलते हैं
इसी लिए तो मैं उर्यानियों से हूँ महफ़ूज़
बहुत हिजाब मिरे साथ साथ चलते हैं
न जाने कौन हैं ये लोग जो कि सदियों से
पस-ए-नक़ाब मिरे साथ साथ चलते हैं
मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ
तो कुछ सहाब मिरे साथ साथ चलते हैं
ग़ज़ल
तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं
फ़रहत अब्बास शाह